सर्पंच के तीन बड़े घोटाले: MANREGA Scam, मिट्टी Scam और कचरा Scam कैसे होता है



आज हम इस ब्लॉग आर्टिकल में बात करेंगे कि सर्पंच घोटाला कैसे करता है।
सर्पंच के घोटालों में सबसे पहला और सबसे बड़ा घोटाला आता है—MANREGA घोटाला।

MANREGA घोटाला कैसे होता है?

गाँव में जो भी MANREGA का काम होता है, वह सर्पंच के अंदर आता है।
Attendance लगवाना, job card बनवाना, payment किसके खाते में जाए — ये सब चीजें भी सर्पंच के कंट्रोल में होती हैं।

सबसे पहले, MANREGA के security को बोलकर गाँव में लोगों के job card बनवाए जाते हैं।
परिवार वालों के, गाँव वालों के — मान लीजिए इस तरीके से 50 फर्जी job card तैयार कर लिए गए।

जब भी गाँव में कोई MANREGA का काम चलता है, जैसे सड़क, नाली, तालाब वगैरह,
तो असली मजदूरों के साथ-साथ घर बैठे लोगों की attendance भी लगा दी जाती है।

पैसा कैसे बँटता है?

जैसे ही पैसे खाते में आते हैं —
घरों में बैठे लोगों के खाते में आया पैसा दो हिस्सों में बँट जाता है:

आधा पैसा वे खुद रख लेते हैं

आधा पैसा सर्पंच, security और attendance लगाने वाले को दे दिया जाता है


मान लीजिए एक आदमी की daily income ₹250 है।
अगर 100 लोगों के खाते में पैसे जाएँ → ₹25,000 एक दिन का।

ये पैसा एक दिन का नहीं आता, 6 दिन का एक साथ आता है → ₹1.5 लाख।
इस ₹1.5 लाख में से आधा जनता रख लेती है और आधा सर्पंच, security और बाकी विभाग में चला जाता है।

एक और महत्वपूर्ण बात

कई बार सर्पंच की जानकारी के बिना भी security और attendance लगाने वाला ये सब कर देता है।
लेकिन जितना घोटाला सर्पंच के अंदर रहकर हो सकता है, उतना वे अकेले नहीं कर सकते।

दूसरा सबसे बड़ा घोटाला — मिट्टी घोटाला


मिट्टी घोटाला मतलब कहीं से मिट्टी निकालना और कहीं पर डालना।

सर्पंच को भी पता होता है कि काम की असली लागत क्या है, ट्रैक्टर वाले को कितना मिलता है, कितने फेरे लगे —
लेकिन सरकार या विभाग को ये पता नहीं चलता।

मान लीजिए असली लागत ₹26,000 की है।
सर्पंच इस पर ₹1,00,000 का बिल बना देता है।

पैसा कैसे बाँटा जाता है?

बचे हुए ₹74,000 में से:

10% ट्रैक्टर वाले को

40% वाटर बॉक्स/डिपार्टमेंट को

50% सर्पंच खुद रख लेता है


किसी को क्या पता चलेगा कि कितनी मिट्टी डाली?
कहाँ से कितनी निकाली?
कहाँ पर कितनी भराई हुई?

यही इस घोटाले की असली ताकत है।

तीसरा घोटाला — कचरा घोटाला


यह घोटाला नालियों की सफाई, कचरा हटाने, गंदगी साफ करवाने में होता है।

क्योंकि कचरे या गंदगी की कोई measurement नहीं होती —
किसी को पता ही नहीं चलता कि कितना काम हुआ, कितना खर्च होना चाहिए था।

एक उदाहरण: मान लो 50,000 की सफाई का काम करवाया।
लेकिन बिल 1–1.5 लाख का बना दिया गया।

पैसा कैसे बँटता है?

आधा डिपार्टमेंट रख लेता है

आधा सर्पंच रख लेता है


इसमें जनता की भी गलती होती है

जहाँ सफाई हुई, अगले ही दिन गाँव वाले फिर से वहीं कचरा डाल देते हैं।
इससे:

न कोई जाँच हो पाती है

न कोई inquiry

न किसी पर दबाव


यही वजह है कि यह घोटाला बहुत आसानी से चलता रहता है।

घोटाला कैसे रोका जा सकता है?


जहाँ काम चल रहा हो, वहाँ जनता को खुद नज़र रखनी चाहिए।
काम के समय मौजूद रहना, फोटो-वीडियो बनाना — तभी ऐसे घोटाले रुक सकते हैं।
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